"श्यामाप्रसाद मुखर्जी": अवतरणों में अंतर
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6 जुलाई 1901 को [[कलकत्ता]] के अत्यन्त प्रतिष्ठित परिवार में डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी जी का जन्म हुआ। उनके पिता सर [[आशुतोष मुखर्जी]] बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे एवं शिक्षाविद् के रूप में विख्यात थे। डॉ॰ मुखर्जी ने 1917 में मैट्रिक किया तथा 1921 में बी०ए० की उपाधि प्राप्त की। 1923 में लॉ की उपाधि अर्जित करने के पश्चात् वे विदेश चले गये और 1926 में [[इंग्लैण्ड]] से बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौटे। अपने पिता का अनुसरण करते हुए उन्होंने भी अल्पायु में ही विद्याध्ययन के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलताएँ अर्जित कर ली थीं। 33 वर्ष की अल्पायु में वे [[कलकत्ता विश्वविद्यालय]] के कुलपति बने। इस पद पर नियुक्ति पाने वाले वे सबसे कम आयु के कुलपति थे। एक विचारक तथा प्रखर शिक्षाविद् के रूप में उनकी उपलब्धि तथा ख्याति निरन्तर आगे बढ़ती गयी। |
6 जुलाई 1901 को [[कोलकाता|कलकत्ता]] के अत्यन्त प्रतिष्ठित परिवार में डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी जी का जन्म हुआ। उनके पिता सर [[आशुतोष मुखर्जी]] बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे एवं शिक्षाविद् के रूप में विख्यात थे। डॉ॰ मुखर्जी ने 1917 में मैट्रिक किया तथा 1921 में बी०ए० की उपाधि प्राप्त की। 1923 में लॉ की उपाधि अर्जित करने के पश्चात् वे विदेश चले गये और 1926 में [[इंग्लैण्ड]] से बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौटे। अपने पिता का अनुसरण करते हुए उन्होंने भी अल्पायु में ही विद्याध्ययन के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलताएँ अर्जित कर ली थीं। 33 वर्ष की अल्पायु में वे [[कलकत्ता विश्वविद्यालय]] के कुलपति बने। इस पद पर नियुक्ति पाने वाले वे सबसे कम आयु के कुलपति थे। एक विचारक तथा प्रखर शिक्षाविद् के रूप में उनकी उपलब्धि तथा ख्याति निरन्तर आगे बढ़ती गयी। |
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=== राजनीतिक जीवन === |
=== राजनीतिक जीवन === |
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डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने स्वेच्छा से अलख जगाने के उद्देश्य से [[राजनीति]] में प्रवेश किया। डॉ॰ मुखर्जी सच्चे अर्थों में मानवता के उपासक और सिद्धान्तवादी थे। उन्होने बहुत से गैर कांग्रेसी हिन्दुओं की मदद से कृषक प्रजा पार्टी से मिलकर प्रगतिशील गठबन्धन का निर्माण किया। इस सरकार में वे वित्तमन्त्री बने। इसी समय वे [[सावरकर]] के राष्ट्रवाद के प्रति आकर्षित हुए और [[हिन्दू महासभा]] में सम्मिलित हुए। |
डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने स्वेच्छा से अलख जगाने के उद्देश्य से [[राजनीति]] में प्रवेश किया। डॉ॰ मुखर्जी सच्चे अर्थों में मानवता के उपासक और सिद्धान्तवादी थे। उन्होने बहुत से गैर कांग्रेसी हिन्दुओं की मदद से कृषक प्रजा पार्टी से मिलकर प्रगतिशील गठबन्धन का निर्माण किया। इस सरकार में वे वित्तमन्त्री बने। इसी समय वे [[सावरकर]] के राष्ट्रवाद के प्रति आकर्षित हुए और [[अखिल भारतीय हिन्दू महासभा|हिन्दू महासभा]] में सम्मिलित हुए। |
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[[मुस्लिम लीग]] की राजनीति से [[बंगाल]] का वातावरण दूषित हो रहा था। वहाँ साम्प्रदायिक विभाजन की नौबत आ रही थी। साम्प्रदायिक लोगों को ब्रिटिश सरकार प्रोत्साहित कर रही थी। ऐसी विषम परिस्थितियों में उन्होंने यह सुनिश्चित करने का बीड़ा उठाया कि बंगाल के हिन्दुओं की उपेक्षा न हो। अपनी विशिष्ट रणनीति से उन्होंने बंगाल के विभाजन के मुस्लिम लीग के प्रयासों को पूरी तरह से नाकाम कर दिया। 1942 में ब्रिटिश सरकार ने विभिन्न राजनैतिक दलों के छोटे-बड़े सभी नेताओं को जेलों में डाल दिया। |
[[मुस्लिम लीग]] की राजनीति से [[बंगाल]] का वातावरण दूषित हो रहा था। वहाँ साम्प्रदायिक विभाजन की नौबत आ रही थी। साम्प्रदायिक लोगों को ब्रिटिश सरकार प्रोत्साहित कर रही थी। ऐसी विषम परिस्थितियों में उन्होंने यह सुनिश्चित करने का बीड़ा उठाया कि बंगाल के हिन्दुओं की उपेक्षा न हो। अपनी विशिष्ट रणनीति से उन्होंने बंगाल के विभाजन के मुस्लिम लीग के प्रयासों को पूरी तरह से नाकाम कर दिया। 1942 में ब्रिटिश सरकार ने विभिन्न राजनैतिक दलों के छोटे-बड़े सभी नेताओं को जेलों में डाल दिया। |
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=== जनसंघ की स्थापना === |
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ब्रिटिश सरकार की [[भारत विभाजन]] की गुप्त योजना और षड्यन्त्र को एक कांग्रेस के नेताओं ने [[अखण्ड भारत]] सम्बन्धी अपने वादों को ताक पर रखकर स्वीकार कर लिया। उस समय डॉ॰ मुखर्जी ने बंगाल और पंजाब के विभाजन की माँग उठाकर प्रस्तावित [[पाकिस्तान]] का विभाजन कराया और आधा बंगाल और आधा [[पंजाब (भारत)|पंजाब]] खण्डित भारत के लिए बचा लिया। [[गान्धी]] जी और [[सरदार पटेल]] के अनुरोध पर वे भारत के पहले मन्त्रिमण्डल में शामिल हुए। उन्हें उद्योग जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गयी। संविधान सभा और प्रान्तीय संसद के सदस्य और केन्द्रीय मन्त्री के नाते उन्होंने शीघ्र ही अपना विशिष्ट स्थान बना लिया। किन्तु उनके राष्ट्रवादी चिन्तन के चलते अन्य नेताओं से मतभेद बराबर बने रहे। फलत: राष्ट्रीय हितों की प्रतिबद्धता को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता मानने के कारण उन्होंने मन्त्रिमण्डल से त्यागपत्र दे दिया। उन्होंने एक नई पार्टी बनायी जो उस समय विरोधी पक्ष के रूप में सबसे बड़ा दल था। अक्टूबर, 1951 में [[भारतीय जनसंघ]] का उद्भव हुआ। |
ब्रिटिश सरकार की [[भारत का विभाजन|भारत विभाजन]] की गुप्त योजना और षड्यन्त्र को एक कांग्रेस के नेताओं ने [[अखण्ड भारत]] सम्बन्धी अपने वादों को ताक पर रखकर स्वीकार कर लिया। उस समय डॉ॰ मुखर्जी ने बंगाल और पंजाब के विभाजन की माँग उठाकर प्रस्तावित [[पाकिस्तान]] का विभाजन कराया और आधा बंगाल और आधा [[पंजाब (भारत)|पंजाब]] खण्डित भारत के लिए बचा लिया। [[महात्मा गांधी|गान्धी]] जी और [[वल्लभ भाई पटेल|सरदार पटेल]] के अनुरोध पर वे भारत के पहले मन्त्रिमण्डल में शामिल हुए। उन्हें उद्योग जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गयी। संविधान सभा और प्रान्तीय संसद के सदस्य और केन्द्रीय मन्त्री के नाते उन्होंने शीघ्र ही अपना विशिष्ट स्थान बना लिया। किन्तु उनके राष्ट्रवादी चिन्तन के चलते अन्य नेताओं से मतभेद बराबर बने रहे। फलत: राष्ट्रीय हितों की प्रतिबद्धता को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता मानने के कारण उन्होंने मन्त्रिमण्डल से त्यागपत्र दे दिया। उन्होंने एक नई पार्टी बनायी जो उस समय विरोधी पक्ष के रूप में सबसे बड़ा दल था। अक्टूबर, 1951 में [[भारतीय जनसंघ]] का उद्भव हुआ। |
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=== संसद में |
=== संसद में == |
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मुखर्जी [[जम्मू और कश्मीर|जम्मू कश्मीर]] को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। उस समय जम्मू कश्मीर का अलग [[ध्वज|झण्डा]] और अलग [[संविधान]] था। वहाँ का मुख्यमन्त्री (वजीरे-आज़म) अर्थात् [[प्रधानमन्त्री]] कहलाता था। संसद में अपने भाषण में डॉ॰ मुखर्जी ने [[अनुच्छेद ३७०|धारा-370]] को समाप्त करने की भी जोरदार वकालत की। अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपना जीवन बलिदान कर दूँगा। उन्होंने तात्कालिन नेहरू सरकार को चुनौती दी तथा अपने दृढ़ निश्चय पर अटल रहे। अपने संकल्प को पूरा करने के लिये वे 1953 में बिना परमिट लिये जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। वहाँ पहुँचते ही उन्हें गिरफ्तार कर नज़रबन्द कर लिया गया। 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी। |
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==सन्दर्भ== |
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==इन्हें भी देखें== |
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*[[अखिल भारतीय जनसंघ]] |
*[[भारतीय जनसंघ|अखिल भारतीय जनसंघ]] |
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*[[हिन्दू महासभा]] |
*[[अखिल भारतीय हिन्दू महासभा|हिन्दू महासभा]] |
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*[[कोलकाता विश्वविद्यालय]] |
*[[कलकत्ता विश्वविद्यालय|कोलकाता विश्वविद्यालय]] |
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*[[धारा-370]] |
*[[अनुच्छेद ३७०|धारा-370]] |
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*[[जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, २०१९]] |
*[[जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019|जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, २०१९]] |
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== बाहरी कड़ियाँ== |
== बाहरी कड़ियाँ== |
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* [http://www.chhattisgarhvidhansabha.org/pdf/Dr.SPMukarjee.pdf युगदृष्टा डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी] |
* [http://www.chhattisgarhvidhansabha.org/pdf/Dr.SPMukarjee.pdf युगदृष्टा डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी]{{Dead link|date=जून 2020 |bot=InternetArchiveBot }} |
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* [https://web.archive.org/web/20090704235340/http://indiannationalism.org/index.html डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी शोध अधिष्ठान] |
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*[ |
*[https://web.archive.org/web/20140817164428/http://hindi.webdunia.com/%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%A6%E0%A5%8B/%E0%A4%89%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%A6%E0%A5%8B-%E0%A4%9D%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82-%E0%A4%A5%E0%A5%87-1100623071_1.htm उन्हें एक राष्ट्र के दो झंडे स्वीकार नहीं थे] (वेबदुनिया) |
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*[https://www.hindisamay.com/content/11723/1/श्यामा-प्रसाद-मुकर्जी-व्याख्यान-गुरुकुल-विश्वविद्यालय-दीक्षांत-भाषण.cspx गुरुकुल विश्वविद्यालय में दीक्षान्त भाषण] |
*[https://www.hindisamay.com/content/11723/1/श्यामा-प्रसाद-मुकर्जी-व्याख्यान-गुरुकुल-विश्वविद्यालय-दीक्षांत-भाषण.cspx गुरुकुल विश्वविद्यालय में दीक्षान्त भाषण] |
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* [https://web.archive.org/web/20190708073808/https://www.prabhasakshi.com/personality/shyama-prasad-mukherjee-biography मानवता के उपासक और सिद्धान्तवादी राजनीतिज्ञ थे डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी] |
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[[श्रेणी:व्यक्तिगत जीवन]] |
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[[श्रेणी:1901 में जन्मे लोग]] |
05:21, 9 जून 2023 के समय का अवतरण
इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री ज्ञानकोश के उपयुक्त नहीं है। इसे हटाया जा सकता है। (मार्च 2015) स्रोत खोजें: "श्यामाप्रसाद मुखर्जी" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी | |
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डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी | |
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, भारत सरकार
| |
पद बहाल 15 अगस्त 1947 – 6 अप्रैल 1950 | |
प्रधानमंत्री | जवाहरलाल नेहरू |
पूर्वा धिकारी | Position established |
उत्तरा धिकारी | नित्यानन्द कानूनगो |
संस्थापक-अध्यक्ष, भारतीय जन संघ
| |
पद बहाल 1951–1952 | |
पूर्वा धिकारी | Position established |
उत्तरा धिकारी | मौलि चन्द्र शर्मा |
वित्त मंत्री, बंगाल प्रांत
| |
पद बहाल 12 दिसम्बर 1941 – 20 नवम्बर 1942 | |
प्रधानमंत्री | ए के फज़लूल हक |
सांसद, बंगाल विधान परिषद्
| |
पद बहाल 1929–1947 | |
कुलपति, कलकत्ता विश्वविद्यालय
| |
पद बहाल 8 अगस्त 1934 – 7 अगस्त 1938 | |
पूर्वा धिकारी | हासन सुहरावर्दी |
उत्तरा धिकारी | मुहम्मद अजीजल हक |
जन्म | 06 जुलाई 1901 कलकत्ता, बंगाल, ब्रिटिश भारत |
मृत्यु | 23 जून 1953 कश्मीर कारावास स्वतन्त्र भारत | (उम्र 51)
राष्ट्रीयता | भारतीय |
राजनीतिक दल | भारतीय जनसंघ |
जीवन संगी | सुधा देवी |
धर्म | हिन्दू |
डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी (जन्म: 6 जुलाई 1901 - मृत्यु: 23 जून 1953) शिक्षाविद्, चिन्तक और भारतीय जनसंघ के संस्थापक थे।
जीवन वृत्त
[संपादित करें]6 जुलाई 1901 को कलकत्ता के अत्यन्त प्रतिष्ठित परिवार में डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी जी का जन्म हुआ। उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे एवं शिक्षाविद् के रूप में विख्यात थे। डॉ॰ मुखर्जी ने 1917 में मैट्रिक किया तथा 1921 में बी०ए० की उपाधि प्राप्त की। 1923 में लॉ की उपाधि अर्जित करने के पश्चात् वे विदेश चले गये और 1926 में इंग्लैण्ड से बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौटे। अपने पिता का अनुसरण करते हुए उन्होंने भी अल्पायु में ही विद्याध्ययन के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलताएँ अर्जित कर ली थीं। 33 वर्ष की अल्पायु में वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने। इस पद पर नियुक्ति पाने वाले वे सबसे कम आयु के कुलपति थे। एक विचारक तथा प्रखर शिक्षाविद् के रूप में उनकी उपलब्धि तथा ख्याति निरन्तर आगे बढ़ती गयी।
राजनीतिक जीवन
[संपादित करें]डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने स्वेच्छा से अलख जगाने के उद्देश्य से राजनीति में प्रवेश किया। डॉ॰ मुखर्जी सच्चे अर्थों में मानवता के उपासक और सिद्धान्तवादी थे। उन्होने बहुत से गैर कांग्रेसी हिन्दुओं की मदद से कृषक प्रजा पार्टी से मिलकर प्रगतिशील गठबन्धन का निर्माण किया। इस सरकार में वे वित्तमन्त्री बने। इसी समय वे सावरकर के राष्ट्रवाद के प्रति आकर्षित हुए और हिन्दू महासभा में सम्मिलित हुए।
मुस्लिम लीग की राजनीति से बंगाल का वातावरण दूषित हो रहा था। वहाँ साम्प्रदायिक विभाजन की नौबत आ रही थी। साम्प्रदायिक लोगों को ब्रिटिश सरकार प्रोत्साहित कर रही थी। ऐसी विषम परिस्थितियों में उन्होंने यह सुनिश्चित करने का बीड़ा उठाया कि बंगाल के हिन्दुओं की उपेक्षा न हो। अपनी विशिष्ट रणनीति से उन्होंने बंगाल के विभाजन के मुस्लिम लीग के प्रयासों को पूरी तरह से नाकाम कर दिया। 1942 में ब्रिटिश सरकार ने विभिन्न राजनैतिक दलों के छोटे-बड़े सभी नेताओं को जेलों में डाल दिया।
डॉ॰ मुखर्जी इस धारणा के प्रबल समर्थक थे कि सांस्कृतिक दृष्टि से हम सब एक हैं। इसलिए धर्म के आधार पर वे विभाजन के कट्टर विरोधी थे। वे मानते थे कि विभाजन सम्बन्धी उत्पन्न हुई परिस्थिति ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों से थी। वे मानते थे कि आधारभूत सत्य यह है कि हम सब एक हैं। हममें कोई अन्तर नहीं है। हम सब एक ही रक्त के हैं। एक ही भाषा, एक ही संस्कृति और एक ही हमारी विरासत है। परन्तु उनके इन विचारों को अन्य राजनैतिक दल के तत्कालीन नेताओं ने अन्यथा रूप से प्रचारित-प्रसारित किया। बावजूद इसके लोगों के दिलों में उनके प्रति अथाह प्यार और समर्थन बढ़ता गया। अगस्त, 1946 में मुस्लिम लीग ने जंग की राह पकड़ ली और कलकत्ता में भयंकर बर्बरतापूर्वक अमानवीय मारकाट हुई। उस समय कांग्रेस का नेतृत्व सामूहिक रूप से आतंकित था।
जनसंघ की स्थापना
[संपादित करें]ब्रिटिश सरकार की भारत विभाजन की गुप्त योजना और षड्यन्त्र को एक कांग्रेस के नेताओं ने अखण्ड भारत सम्बन्धी अपने वादों को ताक पर रखकर स्वीकार कर लिया। उस समय डॉ॰ मुखर्जी ने बंगाल और पंजाब के विभाजन की माँग उठाकर प्रस्तावित पाकिस्तान का विभाजन कराया और आधा बंगाल और आधा पंजाब खण्डित भारत के लिए बचा लिया। गान्धी जी और सरदार पटेल के अनुरोध पर वे भारत के पहले मन्त्रिमण्डल में शामिल हुए। उन्हें उद्योग जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गयी। संविधान सभा और प्रान्तीय संसद के सदस्य और केन्द्रीय मन्त्री के नाते उन्होंने शीघ्र ही अपना विशिष्ट स्थान बना लिया। किन्तु उनके राष्ट्रवादी चिन्तन के चलते अन्य नेताओं से मतभेद बराबर बने रहे। फलत: राष्ट्रीय हितों की प्रतिबद्धता को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता मानने के कारण उन्होंने मन्त्रिमण्डल से त्यागपत्र दे दिया। उन्होंने एक नई पार्टी बनायी जो उस समय विरोधी पक्ष के रूप में सबसे बड़ा दल था। अक्टूबर, 1951 में भारतीय जनसंघ का उद्भव हुआ।
= संसद में
[संपादित करें]मुखर्जी जम्मू कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। उस समय जम्मू कश्मीर का अलग झण्डा और अलग संविधान था। वहाँ का मुख्यमन्त्री (वजीरे-आज़म) अर्थात् प्रधानमन्त्री कहलाता था। संसद में अपने भाषण में डॉ॰ मुखर्जी ने धारा-370 को समाप्त करने की भी जोरदार वकालत की। अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपना जीवन बलिदान कर दूँगा। उन्होंने तात्कालिन नेहरू सरकार को चुनौती दी तथा अपने दृढ़ निश्चय पर अटल रहे। अपने संकल्प को पूरा करने के लिये वे 1953 में बिना परमिट लिये जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। वहाँ पहुँचते ही उन्हें गिरफ्तार कर नज़रबन्द कर लिया गया। 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी।