राज्य सरकारें पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी में क्यों शामिल नहीं करना चाहतीं?

| Updated: 28 Jun 2024, 6:27 pm

राज्यों के लिए कर राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत पेट्रोलियम है. क्या केंद्र सरकार के पास ऐसी कोई योजना है जिससे जीएसटी में पेट्रोलियम पदार्थों को शामिल करने पर राजस्व घाटे की भरपाई हो सके?

विक्रांत निर्मला सिंह


राज्य सरकारें पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी में क्यों शामिल नहीं करना चाहतीं?
राज्य सरकारें पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी में क्यों शामिल नहीं करना चाहतीं?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में 22 जून को जीएसटी परिषद की बैठक हुई. इस बैठक में कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए. उदाहरण के लिए, प्लेटफार्म टिकट पर जीएसटी से छूट दी गई है और छात्रावास में रहने वाले बच्चों को राहत प्रदान की गई है. फर्जी इनवॉइस पर रोक लगाने के लिए चरणबद्ध तरीके से पूरे देश में बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण की बात कही गई. लेकिन इस बैठक में सबकी नजरे इस बात पर थी कि क्या पेट्रोलियम पदार्थों को भी जीएसटी के दायरे में लाया जाएगा? क्या सभी राज्य सरकारें इसके लिए तैयार होंगी? क्या केंद्र सरकार के पास ऐसी कोई योजना है जिससे पेट्रोलियम पदार्थों को शामिल करने पर राजस्व घाटे की भरपाई हो सके? जब तक इन सवालों का उत्तर नहीं मिल जाता, जीएसटी के दायरे में पेट्रोलियम पदार्थों को लाना कठिन है.

अभी कौन सी वस्तुएं जीएसटी के दायरे में नहीं हैं?



वर्तमान में जीएसटी सभी वस्तुओं और सेवाओं पर लागू होता है, केवल कुछ वस्तुएं और सेवाएं विशेष छूट के दायरे में हैं. उदाहरण के लिए, पीने के लिए शराब और पाँच पेट्रोलियम उत्पाद (कच्चा तेल, पेट्रोल, डीजल, एटीएफ और प्राकृतिक गैस) पर जीएसटी लागू नहीं है. इन पर जीएसटी लागू करने के लिए जीएसटी परिषद की अनुमति आवश्यक है, जिसमें सभी राज्य सरकारें शामिल हैं.

राज्य सरकारें पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाना क्यों नहीं चाहतीं?



जीएसटी लागू होने के बाद से राज्यों के लिए कर राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत पेट्रोलियम है. अगर आंकड़े देखें तो पिछले दस वर्षों में भारतीय राज्यों को पेट्रोलियम उत्पादों से कर के माध्यम से बड़ी राजस्व प्राप्ति हुई है. 2014-15 में राज्य सरकारों ने पेट्रोलियम पर कर के माध्यम से ₹1.37 लाख करोड़ राजस्व जुटाया था, जो 2023-24 में लगभग 8 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि से बढ़कर ₹2.92 लाख करोड़ हो गया.

वित्त वर्ष 2023-24 में पेट्रोलियम पर कर के माध्यम से राजस्व जुटाने वाले शीर्ष पांच राज्यों के कुल राजस्व में पेट्रोलियम का हिस्सा 11-17 प्रतिशत के बीच था. गुजरात, तमिलनाडु और महाराष्ट्र ऐसे राज्य हैं जिनके कुल कर राजस्व में पेट्रोलियम कर का सबसे बड़ा हिस्सा है, जो क्रमशः 17.6 प्रतिशत, 14.6 प्रतिशत और 12.1 प्रतिशत है. इस दौरान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु पेट्रोलियम से कर राजस्व के मामले में सबसे आगे रहे. इन राज्यों ने क्रमशः ₹36,359 करोड़, ₹30,411 करोड़ और ₹24,470 करोड़ रुपये पेट्रोलियम पर कर से वसूले हैं. ये आंकड़े बताते हैं कि पेट्रोलियम से प्राप्त राजस्व राज्य सरकारों के लिए कितना महत्वपूर्ण है. ऐसे में पेट्रोलियम को जीएसटी के दायरे में लाना एक बड़ी चुनौती है.


किन परिस्थितियों में पेट्रोलियम को जीएसटी के दायरे में लाया जा सकता है?



पेट्रोलियम को जीएसटी के दायरे में लाने के लिए केंद्र को राज्यों के साथ समन्वय स्थापित करना होगा. इसके लिए दो मुख्य बातें आवश्यक हैं. पहला, राज्यों को यह भरोसा दिलाना कि उन्हें किसी प्रकार का राजस्व नुकसान नहीं होगा. दूसरा, राजस्व नुकसान की भरपाई के लिए एक ठोस मॉडल प्रस्तुत करना. इस मॉडल को निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर विकसित किया जा सकता है:

1. राज्यों के राजस्व नुकसान की भरपाई: एक ऐसा मॉडल बनाना होगा जो राज्यों के राजस्व नुकसान की भरपाई कर सके और इसके साथ ही साल-दर-साल राज्यों को जरूरत के हिसाब से जीएसटी का हिस्सा भी बढ़े.

2. राज्यवार पेट्रोलियम खपत का अध्ययन: पेट्रोलियम खपत का राज्यवार अध्ययन करना होगा. इसके लिए प्रत्येक राज्य में पेट्रोलियम का औसत खपत का विश्लेषण करना होगा. ये आंकड़े राज्यवार उपलब्ध भी हैं.

3. भविष्य की खपत के आधार पर राजस्व गणना: एक मॉडल तैयार करना होगा जो भविष्य की खपत के अनुसार राजस्व की गणना करे. इससे राज्य भी अपना बजट बनाने में सुविधा महसूस करेंगे.

इस प्रकार का ठोस और व्यवहारिक मॉडल ही राज्यों को यह विश्वास दिला सकता है कि पेट्रोलियम को जीएसटी के दायरे में लाने से उनके राजस्व में किसी प्रकार की कमी नहीं होगी और वे इस बदलाव के लिए सहमत हो सकते हैं. वर्तमान में राज्य सरकारें पेट्रोलियम उत्पादों पर अपनी आवश्यकता के अनुसार वैट (VAT) लगाती हैं, जबकि केंद्र सरकार पहले एक्साइज ड्यूटी लगाती है. इसलिए, जब राज्य सरकारें वैट की दर में वृद्धि करती हैं, तो पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ जाते हैं.

इन दरों के घटने-बढ़ने और राज्यों में अलग-अलग दर होने के कारण ही आज पेट्रोल और डीजल के दाम समान नहीं हैं. अगर पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाया जाता है, तो पूरे देश में इनकी कीमतों में एकरूपता आ जाएगी. इससे न केवल उपभोक्ताओं को लाभ होगा, बल्कि आपूर्ति श्रृंखला भी दुरुस्त हो जाएगी. ऐसा इसलिए क्योंकि राज्यों की सीमाओं में कर बाधाओं के हटने से आपूर्ति तेज होगी. इसलिए सभी राज्य सरकारों को केंद्र के साथ मिलकर राष्ट्र हित में इस पर विचार करना चाहिए.

(लेखक राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, राउरकेला में शोधार्थी और फाइनेंस एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउंसिल के संस्थापक एवं अध्यक्ष हैं.)

अस्वीकरण : इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं, वे इकनॉमिक टाइम्स हिंदी का प्रतिनिधित्व नहीं करते. निवेश से जुड़ा कोई भी फैसला लेने से पहले आप सर्टीफाइड एक्सपर्ट से अवश्य सलाह लें.